Detailed Notes on अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

दुनिया मेरे आगे: अहंकार की परिणति ही विनाश है

‘कै’ ने। सारी गड़बड़ी किसने करी है? ‘कै’ ने। तो हट जाने दो न। ये सब हटाओगे भी तो कौन हटेगा? ‘कै’ हटेगा, ‘मैं’ थोड़े ही हटेगा।

और सात्विकता अगर तुम्हारी गहरी और सच्ची है, तो एक बिंदु आता है जब तुम इस प्रश्न से, इस बोझ से भी मुक्त हो जाते हो कि, "मुझे कुछ चाहिए।" अब तुम गुणातीत हो गए, अब तुमने सात्विकता का भी उल्लंघन कर दिया। सात्विकता भी तुम्हारे लिए तभी तक है जब तक तुम कुछ हो और तुम्हें कुछ चाहिए।

आचार्य: देखिए, जो शब्द है न छोड़ना, इसका कम-से-कम इस्तेमाल करें।

उत्तर- मेजर ध्यानचंद हॉकी के एक प्रसिद्ध

आचार्य: क्योंकि वो गोलू है। उसने अपने-आपको ये बोल दिया है न ‘मैं हूँ'। उसने अपने-आपको एक झूठा नाम दे दिया है कि ‘मैं हूँ'। वो ‘मैं’ ‘मैं’ है ही नहीं, पर वो अपने-आपको क्या बोलता है? ‘मैं’। अब अगर वो मिट गया तो कौन मिट जाएगा?

सच्ची प्रार्थना में दो बातें होती हैं। पहली बात, जिधर को जाना है, अर्थात् जो मांग रहे हो, जो कामना है, वो सही होनी चाहिए। और सही प्रार्थना यही होती है कि मैं न रहूँ। अभी रामप्रसाद बिस्मिल जी की हम पंक्तियाँ पढ़ रहे थे न उस दिन कि 'मैं न रहूँ बस मैं यही चाहता हूँ', यही प्रार्थना है।

अहम् के लिए हैं। और सारी दिक़्क़तें उसे किससे हैं? आत्मा तो किसी को दिक़्क़त देती नहीं। अहम् को ही दिक़्क़त है, और अहम् को अहम् से ही दिक़्क़त है।

अमृतबिंदु उपनिषद् में कहा है — मन आप ही अपना दुश्मन है, मन आप ही अपना click here दोस्त है। अगर मुझे सूत्र सही याद है तो “मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।” मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष, दोनों का कारण है। तो अच्छा अहंकार आप समझ गये न कौनसा होता है?

तामसिक अहंकार वो जिसे छटपटाहट अनुभव होनी बहुत कम हो गई है। कैसे कम हो गई है? वैसे कम हो गई है जैसे एक बेहोश आदमी को छटपटाहट नहीं महसूस होती। जैसे एक आदमी जिसे दर्द बहुत हो रहा हो और उसे तुम नींद का इंजेक्शन दे देते हो, उसकी छटपटाहट कम हो जाती है, तमसा ऐसी ही है। बेहोशी के काले अँधेरे को कहते हैं 'तमसा'। चेतनाहीनता के तिमिर का नाम है 'तमसा'।

आचार्य: हाँ, पर तुम ये भूल जाते हो कि यहाँ पर भी लोग तुम्हें परेशान इसलिए कर पाते थे क्योंकि तुम परेशान होने को तैयार ही नहीं इच्छुक थे। ये तुम्हारे पीछे अभी पड़ा हुआ था, “दारु पी, दारु पी, दारु पी चल आज, सैटरडे नाईट (शनिवार रात) है”। पड़ा था न?

Close your eyes, take a deep breath, and when you open them, envision a beacon of solutions brightening the shadowy depths of every concern.

विनम्रता से सँभालने की सीख दी है'-धनराज पिल्लै की इस बात का क्या अर्थ है?

आचार्य: तो शरीर मर जाता है? तो कैसी बातें पूछ रहे हो! तुम तो बेहोश भी हो जाते हो तो शरीर नहीं ख़त्म हो जाता। बल्कि कई दफे तो तुम्हें बेहोश करना ज़रूरी होता है ताकि शरीर बचे। तुम्हारी सर्जरी (शल्य-चिकित्सा) होनी है और तुम्हें बेहोश ना किया जाए, तो तुम्हारा ‘मैं’ तो डॉक्टर (चिकित्स्क) की ही गर्दन पकड़ लेगा। कोई डॉक्टर (चिकित्स्क) तुमको बिना बेहोश किए, बिना एनेस्थेसिया (संज्ञाहरक) लगाए तुम्हारी सर्जरी (शल्य-चिकित्सा) करे, तुम देखो कैसे उचक कर उसकी गर्दन पकड़ते हो।

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